गुरुवार, 31 मई 2007

दो पंक्तियाँ तुम्हारे लिए .....

इतनी कवितांयें सुन जाना
, बता कहॉ से लाऊं ।
 ह्रदय स्रोत मेरी कविता का ,
 चल आज तुझे दिखलाऊं।
 सच्चा प्रेम सनेह भला क्या ?
 समझ नहीं मैं पाया।
 किन्तु प्रिये तेरी यादों को ,
 कभी भुला ना पाया।

रविवार, 27 मई 2007

तेरे बिन ....

यूँ तो अब तक मैं-
 अकेला ही चला था-
 रास्तों कि खोज में,
 किन्तु अब तेरे बिना
 एक पल भी चलना ,
 है बड़ा मुश्किल
 नहीं मुमकिन,
 बताओ तुम मेरी "जाना ", 
 ये पागल करे ? 
 जीं नहीं सकता - 
 बिना तेरे.
 है सजा कितनी कठिन , 
 बिना तेरे ये जीवन, 
 बयाँ कैसे करे ? 
 मजबूर, बेचारा , 
 ये साला- इश्क का मारा....

मेरा डेली रूटीन ....

वो बिन बादल बरसातों में , किसी को याद करना , बिना बात के हँसना, और रोना ... उसकी तस्वीर ,जो मन में बसी है को सामने बिठाना और बिन बोले बात करना , फिर हँसना ,छूना ,छेड़ना और बांहों में ले के सहलाना ... और फिर उसी के ख्वाबों मे सो जाना... यही है मेरा daily rutiene... तुमसे ही शुरू और तुम्ही पर ......

शनिवार, 26 मई 2007

ये दूरियाँ......

ये दूरियाँ मुझको तेरे नजदीक लातीं हैं ,
 ये जिन्दगी क्या है तेरे बिन ये बतातीं हैं,
 तू है मेरी और ... सिर्फ मैं तेरे लिए हूँ ,
 इस जगत में मैं अकेला ही नही हूँ ,
 इस कथन का विश्वास ये मुझको कराती  हैं ,
 ये दूरियाँ मुझको तेरे नजदीक लातीं हैं ,
ये दूरियाँ मुझको तेरे नजदीक लातीं हैं ,
 ये जिन्दगी क्या है तेरे बिन ये बतातीं हैं ,
 सुन प्यार करना है ,तुझको बहुत जाना ... 
 और वक़्त कम है ... 
 इस वक़्त का अहसास , ये मुझको कराती हैं ..... 
 ये दूरियां मुझको तेरे नजदीक लातीं हैं , 
 यह ज़िन्दगी क्या है तेरे बिन ,ये बताती हैं,

एक पल का साथ

एक पल का साथ अपना ,

गम अगर लो बाँट अपना ,

तो दिलों का बोझ भी हल्का लगेगा ,

फिर दिलों को ग़ैर भी अपना लगेगा ,

किन्तु अगले पल बिछुड़ना भी पड़ेगा,

याद आयेगी तुम्हारी फिर अकेले में,

रो परेंगी यों ही ऑंखें फिर अकेले में ,

आंसुओं कि कुछ लकीरें बन ही जायेंगी ,

रोकने पर हिल्कियां तो आ ही जाएँगी ,

किन्तु तुम्हारी यादें तो हैं जो हमेशा याद आएँगी ,

अकेले में या कि हज़ारों कि महफिल में ,

तुम्हारी यादें ....... हाँ ..... तुम्हारी यादें ।

यादें .......

उस एक पल की.......




दुष्ट व्यक्ति यदि आपको सम्मान भी दे तो सावधान

समाज में दो प्रकार के मनुष्य सदा से ही पाए जाते रहें हैं – सज्जन और असज्जन | अलग अलग युगों में हम उन्हें विभिन्न नामों से पुकारते रहें ...