पुष्प को देखा सभी ने ,
उसकी कोमलता को देखा,
लालची मनुष्य ने तो -
उस कि सुन्दरता को देखा।
कामना से ग्रस्त ने ,
अपने मद में मस्त ने ,
यह न देखा - झेलता तूफान है,
उसकी कोमलता को देखा,
लालची मनुष्य ने तो -
उस कि सुन्दरता को देखा।
कामना से ग्रस्त ने ,
अपने मद में मस्त ने ,
यह न देखा - झेलता तूफान है,
शिशिर में भी झूमता है.
प्रीति-मधु से झूम कर वह -
कंटकों को चूमता है।
देखिये संघर्ष रत है -
विश्व सारा सो रहा है।
ज्यों किरण ने हाथ फेरा,
पुष्प ने भी आँख खोली ,
माली ने ले कर के झोली-
हाथ ज्यों ही बढाया तोड़ने को.
पुष्प सिहरा एक पल को ,
फिर मुस्कुराया-
सोचा - "मेरा तो जन्म ही उपकार को है,। "
कर समर्पित स्वयं को
परकाज़ हित में-
था प्रसन्न ,
वह प्रसून।