मंगलवार, 29 सितंबर 2009

वीक ट्रेनी (week trainee) -

दोस्तों ,
वायु सेना आपको हमेशा टॉप पर रहना सिखाती है। मगर किसी कारन वश जो ट्रेनिंग में कोई ट्रेनी  सिर्फ़ कुछ नम्बर से ही पास होता है तो उसको वीक  ट्रेनी  का खिताब दे दिया जाता है , और फ़िर सिलसिला शुरू होता है- रेगुलर  क्लासेस  का , बस पढ़ाई ही पढ़ाई , मगर कुछ लोग बुराई मैं भी अच्छाई खोज लेते हैं -



वीक  ट्रेनी बनना महंगा मुझे पड़ गया ,
दोपहर से शाम तक फकुल्टी के चक्कर लगा के दिमाग मेरा सड़ गया ।

सच कहूँ तो ट्रेनिंग में वीक ट्रेनी  की बुरी हालत है।
फैलिएर्स भी कहते हैं तुम पर तो लानत है ।

स्ट्रोंग ट्रेनी  मुझसे बात नही करते हैं ,क्योंकि -
मेरी सारी ड्यूटियां वाही लोग करते है।

मेरी वीकनेस से परेशान एक स्ट्रोंग ट्रेनी  बोला -
उसने अपने मन में दबी भावनाओं का पिटारा खोला -
बोला- प्रिय कभी तो स्ट्रोंग बन जाओ।
कभी हमारे साथ भी पी.टी. , परेड  का लाभ उठाओ।

मैं बोला- "मेरे बलवान  दोस्त ! सच कहूँ तो मैं रोज जिम जाता हूँ ।
और स्ट्रोंग बनने के लिए मैदान के चार चक्कर लगता हूँ ।"

वह बोला- फ्लाईट  कमांडर फैकल्टी चलो अभियान चला रहे हैं।
'एनी  डाउट ' का नारा प्रशिक्षक  लगा रहे हैं ।

मैं बोला - मेरे बल वान दोस्त ! डाउट तो हमें सपने भी नही आते हैं।
ये तो केवल आप हैं ,जो बेचारे प्रशिक्षकों  को सताते हैं ।
इस लिए तुम इस सीमा से बाहर  निकलो,
और एक बात मेरी सुन लो-
'" कोई वीक  बना कोई पास हुआ , कोई टोपर बन कोई खास  हुआ।


      इस जहाँ  में जो जितना  बड़ा हुआ, उसके उतना  ही बांस  हुआ ।"




इस लिए तो कहता  हूँ -




"कोई पास करे या टॉप करे , सब ने समान ही पाया  है ।
तू मौज  मन  और मस्ती कर, तू मोह न कर  सब माया  है. "






                                     "नभ: स्पर्श दीप्तम- I "

रविवार, 30 अगस्त 2009

ग़ज़ल -

मेरे प्यारे दोस्तों , आज बड़े दिनों के बाद मैं दुबारा अपनी कविता तुम्हारे लिए लिखने जा रहा हूँ..... ये सच है की ये सब कवितायें मेरे दिल की सच्ची आवाज़ है...मैं जानता हूँ की आप इस आवाज़ को समझोगे , इस ग़ज़ल को पढ़ने से पहले इतना जन लो की जिंदगी में हम कभी -कभी अपनों के लिए ,अपनों की बजह से ,अपनों से काफी दूर चले जाते हैं,......... और ज़रा कोई सोचे - क्या अपनों से दूर जाके भी कोई खुश रहता है........
" सिर्फ़ तुम्हारी हाँ "

होंठ हिलते तो सही ,आँखें झुकती तो सही ,

हम तो रुक जाते ,जिंदगी रूकती नहीं ।1।

लाख कोशिश की, मगर ,सपने सच ही न हुए ,

जिस को ढूढे ये नज़र ,वो कभी मिलती नही ... ।२।

कितना चाहा था उन्हें ,दिल से हमारे पूछो ,......

बेवफा निकले वही....वफ़ा मिलती ही नही ...... .३ ।

अब तो दिन बीतते हैं , गम के फ़साने लिख कर,

हम तो मर जाते मगर साँस रूकती ही नही .... ।४।

दुष्ट व्यक्ति यदि आपको सम्मान भी दे तो सावधान

समाज में दो प्रकार के मनुष्य सदा से ही पाए जाते रहें हैं – सज्जन और असज्जन | अलग अलग युगों में हम उन्हें विभिन्न नामों से पुकारते रहें ...