रविवार, 3 जनवरी 2010

प्रसून

पुष्प को देखा सभी ने ,
उसकी कोमलता को देखा,
 लालची मनुष्य ने तो -
 उस कि सुन्दरता को देखा।

 कामना से ग्रस्त ने ,
अपने मद में मस्त ने ,
यह न देखा - झेलता तूफान है,
 शिशिर में भी झूमता है.
 प्रीति-मधु से झूम कर वह - 
कंटकों को चूमता है।

 देखिये संघर्ष रत है -
 विश्व सारा सो रहा है। 
 ज्यों किरण ने हाथ फेरा,
 पुष्प ने भी आँख खोली ,
 माली ने ले कर के झोली-
 हाथ ज्यों ही बढाया तोड़ने को.
पुष्प सिहरा एक पल को , 
फिर मुस्कुराया- 
सोचा - "मेरा तो जन्म ही उपकार को है,। "
 कर समर्पित स्वयं को
 परकाज़ हित में-
 था प्रसन्न ,
वह प्रसून।

2 टिप्‍पणियां:

  1. This my first visit to mamtesh's blog andi must say the first poem i read is just overwhelming.. Clearly depicts deep emotions.. really heart touching..
    Thanks mamtesh and keep it up

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  2. I don't have words to express my feelings after reading this composition. Poet is cent percent successful to penetrate his thoughts deep into readers heart. Simply outstanding. Will lite to read more of your's.

    By- Ayush Kumar Dwivedi

    जवाब देंहटाएं

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