तुम मेरे हमेशा करीब हो -
मेरे ख्वाबों में ,
मेरे अहसासों में ,
मेरी आशाओं के सुन्दर से संसार में .
"किसी से बात करने पर
अक्सर तुम्हारा नाम क्यों आता है ?
मेरे मुंह पर "
"कितना चाहा है तुम्हें ? "
यह सिद्ध करना
ज़रूरी तो नहीं
मगर, हाँ !
मुश्किल ज़रूर है
शब्दों में व्यक्त कर पाना
मेरे लिए संभव ही नहीं /
किन्तु विवश हूँ...
शायद बहुत मुश्किल है -
दिल की बातों को दिल में रख पाना //
मगर.....
कहूँ तो किस से कहूँ -
कि तुम मेरे अब भी करीब हो /
वो कालेज के दिन ,
वो फ़िल्मी बातें ,
वो मुझ से किये गए वादे,
........तुम्हें याद भी है....?
...या फिर ...
शायद भूल भी गए होंगे
सब पुरानी बातें /
कहीं खो गयी होंगी -
परदेश कि चमक में /
"एक दिन बहुत बड़ा बनूँगा मैं /"
तुम अक्सर कहते थे /
हमेशा कैरियर कि बातें करना ,
और
स्वप्निल उड़ानें भरना /
मिलने आना-
और तोहफा न लाना /
और कहना -"उधार रहा /"
और धीरे से मुस्करा देना /
ये सब सोचना
मुझे अहसास दिलाता है कि-
तुम मेरे करीब हो /
आज तुम दूर बहुत दूर ...
अपने सपनों के संसार में -
प्रसिद्धि कि बुलंदियों पर -
आज तुम दूर बहुत दूर ...
अपने सपनों के संसार में -
प्रसिद्धि कि बुलंदियों पर -
किसी गोरी मेम के साथ ,
भुला कर इतने वर्षों बाद ,
प्यार की वह पहली सौगात ,
उधार के मेरे तोहफे सात -
बताओ कब दे देंगे आप?
बताओ कब दे देंगे आप?और मैं इतने वर्षों बाद -
आज भी तकूँ आप की राह-
बड़ा सा प्यारा सुन्दर यान
देख पीपल के ऊपर ,
मन को ख़ुशी हुई अनजान -
कि आते होंगे मेरे श्याम /
कि आते होंगे मेरे श्याम /
किन्तु ...
सपनों के पैर ही कहाँ होते हैं -
सिर्फ पंख होते हैं /
और धडाम से गिर कर टूट जातें हैं-
"सच " के रन -वे पर
-लैंड करने से पहले ही /
और एक बार फिर अधूरी रह जाती-
मेरी कविता/
मगर जब भी पन्ने पलटती हूँ -तो
एक बार फिर हंस लेती हूँ -
स्वयं ही स्वयं पर //
ये मेरी अंतहीन कवितायेँ ...
अक्सर ये अहसास दिलातीं हैं कि-
किसी बहाने ही सही -
तुम आज भी मेरे बहुत करीब हो
सच ... तुम आज भी मेरे करीब हो //
मगर जब भी पन्ने पलटती हूँ -तो
एक बार फिर हंस लेती हूँ -
स्वयं ही स्वयं पर //
ये मेरी अंतहीन कवितायेँ ...
अक्सर ये अहसास दिलातीं हैं कि-
किसी बहाने ही सही -
तुम आज भी मेरे बहुत करीब हो
सच ... तुम आज भी मेरे करीब हो //