रविवार, 3 जुलाई 2011

कभी हम जी नहीं पाए ....

बहुत मौके मिले थे ,


जिंदगी जीने के मगर .....


कभी हम व्यस्त थे हदतन,


कभी.. हम जी नहीं पाए .










रिश्तों की दरारों को ;


बहुत बढ़ते मैंने देखा...


कभी समझा न सके हम,तो  


कभी खुद समझ ना पाए.






बहुत सोचा - बयां कर दें


सभी बातें मेरे दिल की ...


कभी दिल कह नहीं पाया ,तो


कभी वो सुन नहीं पाए.






बहुत थी खूबियाँ मुझ में ,


उन्हें पहचानता भी था ;


कभी मौका ना मिला तो;


कभी हम दे नहीं पाए .






कल की योजना में ही,


हमेशा आज को खोया ...


उसी कल की फ़िक्र  में -


आज तक हम सो नहीं पाए.






जीवन को समझना ही ,


है शायद लक्ष्य जीवन का ..


कभी कोशिश नहीं की हम ने ,


कभी हम हम जान ना पाए.


                                                                 (जारी.......)





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