मेरे प्यारे दोस्तों , आज बड़े दिनों के बाद मैं दुबारा अपनी कविता तुम्हारे लिए लिखने जा रहा हूँ.....
ये सच है की ये सब कवितायें मेरे दिल की सच्ची आवाज़ है...मैं जानता हूँ की आप इस आवाज़ को समझोगे ,
इस ग़ज़ल को पढ़ने से पहले इतना जन लो की जिंदगी में हम कभी -कभी अपनों के लिए ,अपनों की बजह से ,अपनों से काफी दूर चले जाते हैं,......... और ज़रा कोई सोचे - क्या अपनों से दूर जाके भी कोई खुश रहता है........
" सिर्फ़ तुम्हारी हाँ "
होंठ हिलते तो सही ,आँखें झुकती तो सही ,
हम तो रुक जाते ,जिंदगी रूकती नहीं ।1।
लाख कोशिश की, मगर ,सपने सच ही न हुए ,
जिस को ढूढे ये नज़र ,वो कभी मिलती नही ... ।२।
कितना चाहा था उन्हें ,दिल से हमारे पूछो ,......
बेवफा निकले वही....वफ़ा मिलती ही नही ...... .३ ।
अब तो दिन बीतते हैं , गम के फ़साने लिख कर,
हम तो मर जाते मगर साँस रूकती ही नही .... ।४।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी एक मात्र एसा साधन है जिस से पाठक अपने मन की बात लेखक से कह सकता है.इसलिए हे मेरे पाठक मित्र! आप को मेरा ब्लॉग और उसमें लिखी बात कैसी लगी,जरा यहाँ नीचे लिख दीजियेगा ,अपने नाम के साथ