यूँ तो अब तक मैं-
अकेला ही चला था-
रास्तों कि खोज में,
किन्तु अब तेरे बिना
एक पल भी चलना ,
है बड़ा मुश्किल
नहीं मुमकिन,
अकेला ही चला था-
रास्तों कि खोज में,
किन्तु अब तेरे बिना
एक पल भी चलना ,
है बड़ा मुश्किल
नहीं मुमकिन,
बताओ तुम मेरी "जाना ",
ये पागल करे ?
जीं नहीं सकता -
बिना तेरे.
है सजा कितनी कठिन ,
बिना तेरे ये जीवन,
बयाँ कैसे करे ?
मजबूर, बेचारा ,
ये साला- इश्क का मारा....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी एक मात्र एसा साधन है जिस से पाठक अपने मन की बात लेखक से कह सकता है.इसलिए हे मेरे पाठक मित्र! आप को मेरा ब्लॉग और उसमें लिखी बात कैसी लगी,जरा यहाँ नीचे लिख दीजियेगा ,अपने नाम के साथ