रविवार, 24 जुलाई 2011

तुम दूर गए ,क्या भूल गए...?

तुम मेरे हमेशा  करीब हो -
मेरी यादों में ,
मेरे ख्वाबों में ,
मेरे अहसासों में ,
मेरी आशाओं के सुन्दर से संसार में .

"किसी से बात करने पर 
अक्सर  तुम्हारा  नाम क्यों आता है ?
मेरे मुंह पर "

"कितना चाहा है तुम्हें ? "
यह सिद्ध  करना 
ज़रूरी तो नहीं 
मगर, हाँ !
मुश्किल ज़रूर है 
शब्दों में व्यक्त कर पाना 
मेरे लिए संभव ही नहीं /

किन्तु विवश हूँ...
शायद बहुत मुश्किल है -
दिल की बातों  को दिल में रख पाना //
मगर.....
कहूँ तो किस से कहूँ - 
कि  तुम मेरे अब भी करीब हो /

वो कालेज के दिन ,
वो फ़िल्मी बातें ,
वो मुझ से किये गए वादे,
........तुम्हें याद भी है....?
...या फिर ...
शायद भूल भी गए होंगे 
सब पुरानी बातें /
कहीं खो गयी होंगी -
परदेश कि चमक में /


"एक दिन बहुत बड़ा बनूँगा मैं /"
तुम अक्सर कहते थे /
हमेशा कैरियर कि बातें करना ,
और 
स्वप्निल उड़ानें भरना /


मिलने आना-
और तोहफा न लाना /
और कहना -"उधार रहा /"
और धीरे  से मुस्करा देना / 


ये सब सोचना
मुझे अहसास  दिलाता  है  कि- 
तुम मेरे करीब हो /




आज तुम दूर बहुत दूर ...
अपने  सपनों के संसार में -
प्रसिद्धि कि बुलंदियों पर -
किसी गोरी मेम  के साथ ,
भुला कर इतने वर्षों बाद ,
प्यार की वह पहली सौगात ,
उधार के मेरे तोहफे सात -
बताओ कब दे देंगे आप?
बताओ कब दे देंगे आप?

और मैं इतने वर्षों बाद -
आज भी तकूँ  आप की राह-

बड़ा सा  प्यारा सुन्दर यान 
देख  पीपल के ऊपर ,
मन को ख़ुशी हुई अनजान -
कि  आते होंगे मेरे श्याम /
कि  आते होंगे मेरे श्याम /

किन्तु ...
सपनों के पैर ही कहाँ होते हैं -
सिर्फ पंख होते हैं /
और धडाम से गिर कर टूट जातें  हैं-
"सच " के रन -वे पर 
-लैंड करने से पहले ही /
और एक बार फिर अधूरी रह  जाती-
मेरी कविता/


मगर जब भी पन्ने पलटती हूँ -तो
एक बार फिर हंस लेती हूँ -
स्वयं  ही स्वयं पर //


ये मेरी अंतहीन कवितायेँ ...
अक्सर ये अहसास दिलातीं हैं कि-
किसी बहाने ही सही -
तुम आज भी मेरे बहुत करीब हो
सच ... तुम आज भी मेरे करीब हो //




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