रविवार, 3 जनवरी 2010

प्रसून

पुष्प को देखा सभी ने ,
उसकी कोमलता को देखा,
 लालची मनुष्य ने तो -
 उस कि सुन्दरता को देखा।

 कामना से ग्रस्त ने ,
अपने मद में मस्त ने ,
यह न देखा - झेलता तूफान है,
 शिशिर में भी झूमता है.
 प्रीति-मधु से झूम कर वह - 
कंटकों को चूमता है।

 देखिये संघर्ष रत है -
 विश्व सारा सो रहा है। 
 ज्यों किरण ने हाथ फेरा,
 पुष्प ने भी आँख खोली ,
 माली ने ले कर के झोली-
 हाथ ज्यों ही बढाया तोड़ने को.
पुष्प सिहरा एक पल को , 
फिर मुस्कुराया- 
सोचा - "मेरा तो जन्म ही उपकार को है,। "
 कर समर्पित स्वयं को
 परकाज़ हित में-
 था प्रसन्न ,
वह प्रसून।

दुष्ट व्यक्ति यदि आपको सम्मान भी दे तो सावधान

समाज में दो प्रकार के मनुष्य सदा से ही पाए जाते रहें हैं – सज्जन और असज्जन | अलग अलग युगों में हम उन्हें विभिन्न नामों से पुकारते रहें ...