रविवार, 27 मई 2007

तेरे बिन ....

यूँ तो अब तक मैं-
 अकेला ही चला था-
 रास्तों कि खोज में,
 किन्तु अब तेरे बिना
 एक पल भी चलना ,
 है बड़ा मुश्किल
 नहीं मुमकिन,
 बताओ तुम मेरी "जाना ", 
 ये पागल करे ? 
 जीं नहीं सकता - 
 बिना तेरे.
 है सजा कितनी कठिन , 
 बिना तेरे ये जीवन, 
 बयाँ कैसे करे ? 
 मजबूर, बेचारा , 
 ये साला- इश्क का मारा....

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